HINDI BHAJAN

सांगलिया धूणि भजन

ओम कहे संसार में, साँचा सतगुरु देव।

तन मन धन भेंट करके, करो गुरां की सेव॥

ओम कहे संसार में, तिरण सत्‍संग नाव।

बैठ चलो सतलोक में, जम का लगे न डांव॥

ओम कहे संसार में, धुणी जोर की धाम।

शरण आया सुखी रहे, मेटे कलह तमाम॥

ओम कहे संसार में, सांगलपति की धाम।

ऊँच नीच भेद नाहीं, सबका सारे काम॥

ओम कहे संसार में, तिरण को है उपाय।

जिन पर कृपा सायब की, रहे कभी ना हाण॥

ओम कहे संसार में, कर्म करना महान्।

जीवतां जस ले लीज्‍यो, अपजस मरण समान॥

ओम कहे संसार में, सांगलिया की धुणी।

भक्‍तों का भला होवे, सन्‍त हुए है गुणी॥

ओम कहे संसार में, सांगलपति दरबार।

छुआछुत माने नहीं, ऊँच नीच इकसार॥

सांगलपति भजनावली, पुस्‍तक बड़ी विशेष।

महापुरूषों का परिचय, वाणी सत् उपदेश॥

सांगलपति भजनावली, सबको आसी दाय।

गद्य पद्य दोनों रूप, दिनी सरल समझाय॥

सांगलपति भजनावली, पुस्‍तक दी छपवाय।

ओमदास कहे रुचि के, पढ़ो सभी चित लाय॥

शिक्षा

शिक्षा को ग्रहण कर लो, और अशिक्षा दूर।

बच्‍चा बच्‍ची सब पढ़ो, ल्‍यो विद्या भरपुर॥

शिक्षा लेवो तुम सभी, करो अशिक्षा दूर।

शिक्षा में निज सार है, गुण भरिया भरपूर॥

ओम पढ़े बच्‍चे सभी, मिलकर करो विचार।

संविधान में दर्ज है, शिक्षा का अधिकार॥

कुप्रथाए

ओम कहे चेतो, करो पक्‍को इलाज।

कुप्रथाएँ बंद करो, सुधारल्‍यो समाज॥

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ

सदा सन्‍तान सम समझ, पुत्री पुत्र समान।

मत कर भेद बच्‍चों में घट घट में भगवान॥

कन्‍या भ्रूण हत्‍या

कन्‍या भ्रूण हत्‍याएँ, है बड़ा महापाप।

सभी मिल रोक लगाओ, मेटो कुकर्म छाप॥

बल विवा‍ह

सुधारो सब मिल समाज, छोड़ दो सब कुरीति।

बाल विवाह बंद करो, समझ लो सब सुनीति॥

वृक्षारोपण

ओम यह प्रकृति बचाओ, मत करे कभी छेड़।

धरती रहे हरी भरी, खूब लगाओ पेड़॥

स्‍वच्‍छता

शहर नगर गलियाँ सड़क, घर मोहल्‍ला खास।

ओमदास रख स्‍वच्‍छता, रोग न आवे पास॥

सोरठा छन्‍द

यह अर्द्धसम मात्रिक छन्‍द है। इसमें दोहा छन्‍द के विपरीत लक्षण पाये जाते हैं। इसके विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ तथा सम चरणों में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इसमें तुक विषम चरणों अर्थात बीच में मिलती है।

  सोरठा छन्‍द

समझ को बरत सूप, हिरदा माँहि देख्‍यो हरि।

सोई स्‍वयं स्‍वरूप, ओलख लियो ओमदास॥

अदंर बसत अनूप, बँशी गुरु सैन बताई।

साई स्‍वयं स्‍वरूप, ओळख लियो ओमदास॥

सायब हरपल साथ, सैन समझाई सतगुरु।

निरख्‍यो नित्‍य नाथ, ओळख लियो ओमदास॥

उर रहता उल्‍लास, दर्शन करूँ निज देव का।

प्रीतम रहता पास, ओळख लियो ओमदास॥

सैल करी गुरु संग, देखा देश दिवाना।

उन उठी हरि उमंग, ओळख लियो ओमदास॥

सहज घट उदय सूर, कृपा गुरुदेव जी करी।

निरख्‍यो नित्‍य नूर, ओळख लियो ओमदास॥

शिक्षा ल्‍यो गुरु शरण, कुरबाण तन मन धन कर।

तुरन्‍त होवे तिरण, अवसर बड़ो ओमदास॥

अवसर आयो ओम, प्रीत पूरबली पावो।

सिमरो सदा सोहं, जनम तेरो सुधर जाय॥

गुरु महिमा गायकर, गुणवान करना गुरु का।

निज धर्म निभायकर, अवगुण त्‍याग ओमदास॥

सकल इच्‍छा समाप्ति, गुरु से करो ज्ञान ग्रहण।

परा ज्ञान की प्राप्ति, अपरा त्‍याग ओमदास॥

चौपाई छन्‍द:-

यह सम मात्रिक छन्‍द है। इसमें चार चरण होते हैं तथा प्रत्‍येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं।

सांगलपति गुरु दाता स्‍वामी।

आप साहेब अन्‍तर्यामी।

जग में नाम कमायो भारी।

ध्‍यावे थाने दुनिया सारी।

 

सांगलिया की ठाडी दरगा।

शरण आये का काम सरगा।

ऊँच नीच को भेद नहीं माने।

सब भक्‍तों को सम ही जाने।

 

सांगलिया के स्‍वामी राजा।

नित उठ बाजे नोबत बाजा।

शाम सुबह नित होय आरती।

आप सायब सदा परमार्थी।

 

सांगलिया साँची सकलाई।

धुणी मात की जोत सवाई।

पूनम मावस मेलो भरिजे।

शरण आया का काम सरिजे।

 

सांगलिया सकलाई साँची।

धुणी सभी के मन में राची।

दूर-दूर से आय जातरी।

जय बोले है धुणी माता।

शिक्षा

अनपढ़ कोई नहीं रहाई।

सब मिलकर तुम करो पढ़ाई।

शिक्षा का है आज जमाना।

ओम नित पढ़ो और पढ़ाना।

वृक्षारोपण

ओम कहे सब पेड़ लगाओ।

सब मिलकर पर्यावरण बचाओ।

बिना पेड़ ना ऑक्‍सीजन है।

पेड़ है तभी जीवन है।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ

एक समाना बेटा-बेटी।

भेदभाव मत बना कमेठी।

सब घट में भगवान है सदा।

दूर कर लो कुविचार परदा।

 

शिक्षा मान अवगुण हटाओ।

दया करके बेटी बचाओ।

बेटी बचाय उसे पढ़ाओ।

उसे पढ़ाय आगे बढ़ाओ।

नशा

ओम कहे मत पीवो शराब।

धन लगे होय तन मन खराब।

शराब कष्‍टों को कारण है।

त्‍याग ही केवल निवारण है।

स्‍वच्‍छता

इधर उधर मत फैंको कचरा।

रोग का कारण बने कचरा।

कूड़दान का करो प्रयोग।

स्‍वच्‍छता में सबका सहयोग।

जल बचाओ

ओम कहे जल नित्‍य बचाओ।

फालतू जल तुम मत बहाओ।

जल ही तो जीवन है प्‍यारे।

जल का करो प्रबन्‍धन सारे।

कुण्‍डलियाँ छन्‍द

यह छन्‍द दोहा और रोला से मिलकर बनता है। दोहा का चौथा चरण रोला को प्रथम चरण होता है तथा यह जिस शब्‍द से शुरु होता है वही शब्‍द अन्‍त में रहता है।

सायब घट घट रमत है, आँख माँयली खोल।

दर्शन कर निज रूप का, अवसर है अनमोल॥

अवसर है अनमोल, ऐळो खोय मत भाई।

बीत गया जो काल, फेर ना पाछा आई॥

बँशीदास गुरुदेव, भूल भरम किया गायब।

ओमज्ञान आँख से, घट माँहि देखा सायब॥

 

शिक्षा लेवो सकल नर, शिक्षा में है सार।

शिक्षा बिन अशिक्षा का, कैसे हो संहार॥

कैसे हो संहार, शिक्षा से मुँह ना मोड़।

दुनिया में देख लो, है शिक्षा की ही दौड़॥

बँशीदास गुरुदेव, आप दीनी गुरू दीक्षा।

ओमसमय खोय मत, लो सभी सच्‍ची शिक्षा॥

 

सदा ही बोलो मीठा, छोड़ो कड़वा बोल।

बोली से पूर्व प्‍यारे, लिजे शब्‍द को तौल॥

लिजे शब्‍द को तौल, बोल मीठा वशीकरण।

कौआ कोयल भेद, बोल ही के समीकरण॥

बँशीदास गुरुदेव, हटाया कुबोल परदा।

ओमदासमधुर सब, कोयल ज्‍यूं बोलो सदा॥

 

अवसर आयो है ठीक, मिलगी मानुष देह।

मात पिता गुरुदेव की, कर लो सेवा स्‍नेह॥

कर लो सेवा स्‍नेह, तीर्थ उनके चरणों में।

जिन पर कृपा इनकी, न्‍हाये मौज झरणों में॥

बँशी गुरु कृपा करी, छोड़ी ना कोई कसर।

त्रिलोक में त्रि सेवा, ‘ओमदासबड़ो अवसर॥

 

चार कहूँ पुरुषार्थ सुन, अर्थ धर्म अरु काम।

गौण पुरुषार्थ तीन है, मुख्‍य मोक्ष है नाम॥

मुख्‍य मोक्ष है नाम, जिसको ही लक्ष्‍य मानो।

गुरु शरण करो भक्ति, अपना स्‍वरूप पिछानो॥

बँशीदास गुरूदेव, दीनी शब्‍दां की सार।

मानव तन पायकर, ‘ओमदासकरो विचार॥

 

श्री गुरु सांगलपति भजन

मैं उस साहेब का सेवक हूँ,

जिन्‍हें अज्ञानी लोग मनुष्‍य मानते हैं।

टेर – निशदिन धरां आपका ध्‍यान, ज्ञान गणपत देने वाला।

 

जय 3 गणपति गण देवा, निशदिन करां आपकी सेवा।

चढ़ावां पान सुपारी मेवा, खोलो मेरे हिरदे का ताला॥ 1॥

आपकी कहां तक करुं बढ़ाई, मुख से शोभा वारणी न जाई।

सब देवा में सता सवाई, शिव शक्ति के बाला॥ २॥

रिद्धि-सिद्धि लेकर बेगा पधारो, म्‍हारा सारा काज सुधारो।

मैं हूं सांचो भगत तुम्‍हारो, आप हो मेरे रखवाला॥ ३॥

खींवादास तेरा गुण गावे, हो चरणां में शीश नवावे।

सुमरे भक्ति पदार्थ पावे, कर दो जम-जालम टाला॥ ४॥

 

सतगुरु देव दाता अरजी हमारी।

अरजी हमारी स्‍वामी, मरजी तुम्‍हारी॥टेर॥

 

शरणे मे आया तेरी, दयालु करो मत देरी।

सार सुध लेवो मेरी, बिगड़ी सुधारी॥1॥

दीन बन्‍धु दीनानाथ, शीश पे तुम्‍हारा हाथ।

कबहुं नहीं छोडूं साथ, चढ़ी है खुमारी (नशा)॥2॥

अखण्‍ड अनूप आप, जपुं मैं तुम्‍हारा जाप।

पल माहीं काटो पाप, पर उपकारी॥3॥

सतगुरु लादूदास, पूरी हो हमारी आस।

खींव है चरणों का दास, आपका भिखारी॥4॥

 

 जय जय जय सतगुरु निज देवा, निशदिन करां आपकी सेवा॥टेर॥

 

दया करी धरी थे काया, जीव उबारण जग में आया।

खोल दिया मुक्ति भंडार भरेवा॥1॥

केवल स्‍वरूप, अनूप, अनामी, आप हो मेरे अन्‍तर्यामी।

रोम-रोम मेरे आप ही रमेवां॥2॥

आप अपार अखण्‍ड अविनाशी, निराकार स्‍वयं प्रकाशी।

ज्ञानी-मुनीजन जानत भेवा (गूढ़ रहस्‍य) ॥3॥

खींवाजीव पीव सत पावे, आवागमन बहूरी नहीं आवे।

सतगुरु कर दिया अमर अखेवा॥4॥

 

चाल सखी सत्‍संग में चालां, सत्‍संग में सतगुरु आसी।

सतगुरु शरणे होय दीवानी, नहीं तो परले बह जासी॥टेर॥

बहृमा आसी, विष्‍णु आसी, शंकर आसी कैलाशी।

रिद्धि-सिद्धि लेय गजानन्‍द आसी, संग मे गौरजा मां आसी॥1॥

रामा आसी, लक्ष्‍मण आसी, माधोबन का बनवासी।

हनुमान सा पायक आसी, संग में सीता मां आसी॥2॥

पलक पलक म्‍हारे बरस बराबर, घड़ी घड़ी में जुग जासी।

एक पलक सत्‍संग कर ले, कट जावे जीव की चौरासी॥3॥

गुरु की सेवा, हर की बन्‍दगी, बणत बणत कछु बण जासी।

मीठाराम सांगलपति बोल्‍या, भजन करे नर तिर जासी॥4॥

 

खबर करो अपने आप घट की।

ले सतगुरु की ओट दीवाना, भजन करो डट की॥टेर॥

चार छह नौ अठारा बीच में, सूरतां बहुत भटकी।

अनन्‍त पंथ देख्‍या दुनिया में, अधबीच में लटकी॥1॥

सतगुरु बाण ताणकर मार्या, फोड़ी भरम मटकी।

सूरतां जाय सायब संग लागी, अब नहीं रेवे अटकी॥2॥

भयी पिछाण भरम सब भाग्‍या, पाप पोट पटकी।

आठो पहर एक धुन लागी, निर्भय होय रटकी॥3॥

लादूदास मिल्‍या गुरु पूरा, पायी ज्ञान गुटकी।

खींवा शबद खबर लीजे, साँच सार षट्की॥4॥

 

ओ जगदम्‍बे अम्‍बे माय तेरा गुण गायेंगे।

मैया मुक्‍त रूप धर आज्‍या, मन का भ्रम मिटाजा।

सतसंग में रंग बरसाज्‍यां, तुझे मनायेंगे॥1॥

तेरा रूप अनूप सूहाणी, तू है धोलागढ़ की रानी।

सिंह पर बैठी होय दीवानी, रूप सरायेंगे॥2॥

पीकर प्‍याला हो मतवाली, हाथ खपर चामुण्‍डा काली।

एकण हाथ बजा दे ताली, दूष्‍ट खपायेंगे॥3॥

तू है बड़ा बड़ी महामाई, ऋषि मुनि सब ध्‍याई।

अब खींवाकी भीड़ चढ़ आई, स्‍वर्ग पठायेंगे॥4॥

 

रखना भक्‍तों की रखवाला, माँ जगदम्‍बे जवाला॥टेर॥

आद ज्‍वाला तेरी अविगत माया, तीन लोक तेरा पार नहीं पाया।

ऋषि मुनि सब ध्‍यान लगाया, जपते है नाम की माला॥1॥

झिलमिल जोत ज्‍वाला थारी जागे, निरखत जोत भरम सब भागे।

निज भक्‍तों के मैया रहती है सागे, खोल देवे मुक्ति का गेला॥2॥

जे कोई ध्‍यान धरे मैया तेरा, युगां-युगां का मेट दे अँधेरा।

लख चौरासी का काट देवे फेरा, जम जालम का कर देवे टाला॥3॥

दास आस करे मेया तेरी, दर्शन देवो करो मत देरी।

तुझ बिन कौन खबर ले मेरी, ‘खींवतुम्‍हारा है बाला॥4॥

 

दोहा – साहेब, तेरी साहेबी, सब घट रही समाय।

     ज्‍यों मेहन्‍दी के पान में, लाली लखी नहीं जाय॥

दोहा – तन मन से सेवा करे, रहे आज्ञा मायं।

     खींवा सतगुरु देव का, बारम्‍बार गुण गाय॥

          सैयां सतगुरु मन भाया है।

     कृपा भई गुरुदेव की जांका दर्शन पाया है॥टेर॥

सूता जीव अज्ञान दशा में, गुरु आय जगाता है।

सोहं शब्‍द सुणाय, जीव का भ्रम मिटाया है॥1॥

कुमता हटी, सुमता बढ़ी, मन धीरज आया है।

बह जाती बझधार में, गुरुजी आय बचाया है॥2॥

दीनदयाल दया के सागर, जग में आया है।

खोल दिया मोक्ष भंडार, अगम की राह लखाया है॥3॥

लादूदास जी मिल्‍या, गुरु साहेब, सत समझाया है।

खींवादास सायब के शरणे, बधावा गाया है॥4॥

 

देख तस्‍वीर सतगुरु की, मगन मन हो गया मेरा॥टेर॥

भटक कर देखा जग सारा, मिला नहीं मित्र निज प्‍यारा।

चाँद बिन बिलखत है तारा, लगाया रात-दिन हेरा॥1॥

और मेरे दाय नहीं आवे, आप बिना चैन नहीं पावे।

जल बिना मछली तड़पावे, मुझे आधार है तेरा॥2॥

आपका नाम सुना काना, फकीरी ले लिया बाना।

छोड़कर मुझको नहीं जाना, रहूं गुरु चरणों का चेरा॥3॥

पुरबला भाग से जागा, शब्‍द गुरु ज्ञान का लागा।

खींव ले सतगुरु का सागा, दिया गुरु चरणों में डेरा॥4॥

 

सतगुरु दीनदयाल हो, सब देवन का देव।

दास ज्ञान दया करो, दीज्‍यो केवल भेव (गूढ़ रहस्‍य)।

दीज्‍यो केवल भेव, सेव नित करुं तुम्‍हारी।

खींव कहे कर जोड़, लाज गुरु रखना हमारी॥

 

टेर – धर ले गुरु मूर्ति का ध्‍यान, हो जावे जीव का कल्‍याण।

गुरु बिना भेद कोई नहीं पावे, सारे भटक भटक मर जावे।

फिर के लख चौरासी में आवे, जिनको मिला नहीं गुरू ज्ञान॥1॥

सतगुरु सूता जीव जगावे, भूल्‍यां ने राह बतावे।

सत् चित आनन्‍द रूप लखावे, मन के मेटे खेचाताण॥2॥

सतगुरु सत्‍य लोक का वासी, जिणके नहीं काल की फाँसी।

उनके मुक्‍ती रहती दासी, वो है पार बहृमा भगवान॥3॥

जय-जय लादूदास गुरुदेव, निशदिन करां चरणां की सेव।

खींवा पाया केवल भेव, करके तन-मन-धन कुर्बान॥4॥

 

टेर – वीरो राम नाम गुण गावो रे।

अवसर आयो हाथ, मुफ्त मे मत गवाओ रे॥

लख चौरासी में भटकत-भटकत मुश्किल मौको आयो।

सतपुरुषां का साथ करो थे, गफलत दूर हटावो॥1॥

घणा दिनां तक सो लियो बीरा, अब तो नींद उड़ावो।

सूरा होय मोरचा रोको, मत ना पीठ दिखावो॥2॥

दुतिया दुख की बेलड़ी, इणने काट बगावो।

सम्‍पत अपना सच्‍चा साथी, जिणसे प्रीत बढ़ावो॥3॥

बुद्धि बन्‍दुक लेवो कर माहीं, विद्या बारुद भरावो।

पोल पंथे का खोज उड़ावो, सत का राज जमावो॥4॥

समय अमोलक रत्‍न जगत मे, मोड़ न पाछी आवे।

खींव कहे करणी सो अब कर, देर करिया पछतावो॥5॥

 

टेर – जागो भारत के वीरो, थे चेतो करो फकीरो।

आया कलुकाल का पहरा, नहीं अपने आप का बेरा (पता)।

हो जाएगा घोर अंधेरा, धर्म चाल रिहो धीरो॥1॥

तुम उठो फकड़ अकड़ के, मारो यमदूत पकड़ के।

जंग बीच खड़ा बेधड़के, कर दे नाश बदी (अन्‍यायी) रो॥2॥

कभी सांच आंच नहीं आई, इण तीन लोक के मांही।

विपता में प्रकट सांई, गुरु दे आशीष खुशी रो॥3॥

निज धाम छोड़ नहीं जाणा, यह सतगुरु का परवाना।

नीति और वचन निभाना, सत की ज्‍योति जगीरो॥4॥

जय-जय सतगुरु दीन दयाला, थे हो सबका रखवाला।

खींवतुम्‍हारा बाला है, कारज सारो सती रो॥5॥

 

टेर – जगाया जागो म्‍हारा बीर।

क्‍या सोया अचेत नींद में, कर सतसंग मे सीर॥

सतसंग बिना स्‍वर्ण नहीं होता, जैसा कुटा कथीर।

नेम धर्म नीति नहीं जाणे, काई करे मुढ़ जीर॥1॥

सतसंग सागर गहरा भरिया, ज्‍याका निर्मल नीर।

नुगरा जीव महरम नहीं पावे, न्‍हावे मस्‍त फकीर॥2॥

जिणके बोल लगा सतगुरु का, मार लिया मन मीर।

आठो पहर एक लिव लागी, हिरदे भलके हीर॥3॥

लादूदास जी मिल्‍या गुरु पूरा, केवल मूर्ति पीर।

खींवा आस चरणां की राखे, उतरो परली तीर॥4॥

 

संस्‍कार संयाग से, सतगुरु मिले सुजान।

तपत मिटावे तन की, तूं तेरे को जान॥

जीव पीव भेला भया, मिटणी खेंचाताण।

खींवा आनन्‍द आपका, केवा करुं बखाण॥

 

दोहा – सांगलपति शरणु लियो, अबलां के आधार।

नाव चलत है आसरे, इन कर देना भव पार॥

 

टेर – जग में जोर कल दिखाई, बाबा सांगल‍पति महाराज।

अडिग आसन आप बिराजो, अखण्‍ड आपको राज।

दर्शन से प्रसन्‍न भई काया, मुकुट मणि सर ताज॥1॥

सांचा संत सांगलपति स्‍वामी, बांधी धर्म की पाज।

यम का दूत दूर से भागे, सुण-सुण अलख आवाज॥2॥

धर्म उबारो, पाप निवारो, राखो भगतां की लाज।

जहां-जहां भीड़ पड़ी भगतां मे, आप सुधारो काज॥3॥

याद आपकी आवे रात-दिन, सुणज्‍यो गरीब नवाज।

खींवा आस चरणां की राखे, पार उतारो जहाज॥4॥

 

टेर – कर निश्‍चय मैं देख लिया, यह जगत् काल का चारा है।

जिसके घट में दया धर्म, वो भवसागर से पारा है॥

जे कोई नाम लेवे निज मन से, सोहं शब्‍द उचारा है।

जिनके काल कदे नहीं लागे, वो साहेब का प्‍यारा है॥1॥

जे कोई पार हुवे, जग मांही, मन अपने को मारा है।

जत-मत जरणा जारी जुगती से, वो सकल से न्‍यारा है॥2॥

देख लिया सत रूप भूप का, खुलगा मोक्ष द्वारा है।

अपना स्‍वरूप याद कर जोया, देखा खेल अपारा है॥3॥

लादूदास मिल्‍या गुरु सामर्थ, बहृमा स्‍वरूप निज धारा है।

खींवा चेत हेत कर हर से, केवल शब्‍द उचारा है॥4॥

 

सूरा नाम धराय के, तूं मत कलपे वीर।

डटे रहो मैदान में, सन्‍मुख झेलो तीर॥1॥

तीर-तमचां से जो लड़े, वो भी सूरा नाय।

आगे बढ़ पाछा फिरे, ज्‍यांका मुख देखण का नाय॥2॥

सूरा वो ही जाणिये, जो लड़े दीन के हेत।

पुरजा-पुरजा कट पड़े, छोड़े नहीं रण खेत॥3॥

 

टेर – साधो भाई सूरा सन्‍मुख आवे।

कायर चोट कबहु नहीं सेवे, देख फौज घबरावे॥

तन-मन-त्‍याग, चढ़े नर सूरा, सत का सेल समावे।

कूद पड़े बेतंग जंग माही, जरा शंका नहीं ल्‍यावे॥1॥

ज्ञान घोड़े असवार होय कर, चेतन चाबुक लगावे।

पांच, पच्‍चीस तीन त्रिगुण पकड़ घेर घर ल्‍यावे॥2॥

अगम देश में आसन उनका, यम से ड़ड भरावे।

करता आप और नहीं दूजा, निर्भय निसान घूरावे॥3॥

है निज सार, तार से झीना, बिन सतगुरु नहीं पावे।

खींच कहे सूरां की शोभा, भेदी भेद लखावे॥4॥

 

रखना भरोसा प्‍यारे, सृजनहार का।

उसी को फिकर है, सारे संसार का॥टेर॥

झूठा है तेरा मेरा, माया ने चक्‍कर घेरा।

हंस लदेगा डेरा, कोल है करार का॥1॥

सुख मे संगाती सारा, दुख में हो जावे न्‍यारा।

कोई नहीं है मित्र प्‍यारा, बिगड़ी सुधार का॥2॥

बालपणा हंस खेल गमाया, जवानी में याद नहीं आया।

बुढ़ापा में रोग सताया, हो गया बेकार का॥3॥

कुटम्‍ब परिवार छोड़ा, तेरे लिए मुखड़ा मोड़ा।

खींव है दिवाना तेरा, आशिक है दिदार का॥4॥

 

भज मन राम सुखदाई। सिमरन करे जद, मिटे दुखदाई॥टेर॥

राम नाम प्रहलाद पुकारा, बांध पोट गिरवर से डारा।

उनके चोट रति नहीं आई॥1॥

राम नाम मीरा ने गाया, राणा ने उसको जहर पिलाया।

वाणी वेद पुरानों में गाई॥3॥

राम नाम की महिमा अति प्‍यारी, गुरु कृपा हिरदे मे धारी।

 

सतगुरु देव स्‍वामी श्रीमुख गाई॥4॥

 

टेर – जागो भारत के नर-नारी रे।

कुकर्मां ने छोड़, शिक्षा मानो गुरां
री रे॥

गांव-गांव मे मेला भरीजे, घर-घर मे स्‍थान।

नया-नया पंथ चले दुनिया मे, माच रहा तौफान॥

दुनिया देखण आगी सारी रे……..

बहन-भाणजी, भुवा-भतीजी, सब मिल मेले जावे।

राम नाम ने भूल गई, बे गीत ओपरा गावे॥

दुनिया हंसे दे-दे ताली रे…………

मात-पिता सतगुरु की सेवा, करसी कोई सपूत।

नुगरा नेम धर्म कोनी जाणे, खासी जमा का जूत॥

आखिर होसी बहुत दुखारी रे………….

पोल पंथ की करो परीक्षा, मत देवो आदर भाव।

सब भाई मिल रखो सम्‍मति, लागे नहीं जम का
डांव॥

ऐसे सुधरे जनता सारी रे…………..

नेम धर्म मर्यादा तोड़ी, तोड़ दीनी कुल
काण।

रहा नहीं अंश वंश के मांही, माचे खेंचाताण॥

आखिर होसी भूप भिखारी रे………..

लादूदास मिल्‍या गुरु साहेब, दीनी शब्‍द की
सार।

खींवा आस चरणां की राखे, देखी बहुत विचार॥

साहेब नैया पार उतारी रे………..

 

वीरो हिलमिल सोचो पहली रे।

घर-घर माची फूट, आजादी कैसे रहली
रे॥टेर॥

जे आजादी रखनी चाहो, दस दोषा ने त्‍यागो।

तन-मन-धन वचन सेवा से, गुरु भक्ति में
लागो।

थारी बिगड़ी बात बणेली रे……….

अकड़-अकड़ आड़ा मत चालो, मन मे सोच विचारो।

सतपुरुषां की सीख बिना, जनम डूब सी सारो।

भरली कुकर्मां की थैली रे…………..

नेम धर्म नीति मत छोड़ो, अपना धर्म निभावो।

सांच बिना सुधरो नहीं बीरा, फिर-फिर गोता
खावो।

थारी काया हो रही मेली रे……….

लादूदास जी मिल्‍या गुरु पूरा, देनी है सो दे दी।

खींव कहे आजाद जगत में, कहणी है सो कह दी।

या समझेड़ा नर ले ली रे………

 

टेर-बन्‍दा कर भगती मे सीर, बाण तज कुबध कमावण
की।

एक दिल जलस्‍या गोपीचन्‍द राजा, जाके बाजे छतीसो
बाजा।

मेणावत दिया उपदेश, धार ली अलख जगावण
की॥1॥

रावण ने कुबध कमाई, वो हरी जनक की
जाई।

चाल्‍या राम लखन का बाण, तोड़ दी लंका रावण
की॥2॥

पांचों पाण्‍डव, द्रोपत राणी, ज्‍यारा चीर
दुशासन ताणी।

पाण्‍डव गलगा हिमालय जाय, सुणी जद कलयुग आवण
की॥3॥

लिखमीचन्‍द गावे काफिया जोड़, भूल भ्रम भाण्‍डे
को फोड़।

नर ईश्‍वर से नाता जोड़, मानुष देह फेर ना
आवण की॥4॥

 

 सुणले
सत शब्‍दां की सार।

पाप कपट ने छोड़ परे रो, दुर्मति दूर
निवार॥टेर॥

दुर्मति में दर्शे नहीं दाता, पच-पच मरे गिवार।

करोड़ करणी काम नहीं आवे, तीर्थ करो हजार॥1॥

खण्‍ड-पिण्‍ड बहृमाण्‍ड मे देखो, एक ही है करतार।

एक बूंद का सकल पसारा, रचा सर्व संसार॥2॥

गृहस्‍थी का यही धर्म हो, नर नारी मे प्‍यार।

मात-पिता सतगुरु की सेवा, करनी है बाम्‍बार॥3॥

ऊंच-नीच का वर्ण ओलखो, कर्मा के अनुसार।

जन्‍म–जाति के अभिमान मे, मत डुबो मझधार॥4॥

साधू होय तपस्‍या साधे, जत-मत मे
हुंसियार।

सत उपदेश करे जग माहीं, होवे जय-जयकार॥5॥

धर्म समाय धरो दिल धीरज, चालो शब्‍दां की
लार।

वेद शास्‍त्र संत पुकारे, ओ ही मोक्ष
द्वार॥6॥

लादूदास जी मिल्‍या गुरु साहेब, दीना ज्ञान विचार।

खींवा सांच आंच नहीं आवे, सुमरो सृजनहार॥7॥

 

दोहा-सांगलपति नहीं बिसरुं, मेरे घट के प्राण।

रोम-रोम ठसकर भरा, मैं कबहुं नहीं
छोडूं आण॥

 

टेर-निकलंक की नोपत बाजे, बाबा सांगलपति की
धाम।

निकलंक नाम निगे कर निरखो, आप खुदो खुद राम।

नाम लिया होवे निस्‍तारा, सरे मनोरथ काम॥1॥

आदू धाम धणियां की दरगाह, सांगलियो एक गांव।

सायब एक सकल में व्‍यापे, लकड़ स्‍वामी
नाम॥2॥

हम सरभंगी सबके संगी, मेट दिया झोड़
तमाम।

छूआछूत का भ्रम हटाया, कर दिया चक्‍का
झाम॥3॥

लादूदास गुरुदेव दयालु, है मेरे सत स्‍याम।

खींव करे चरणों की सेवा, दिल अपने को
थाम॥4॥

 

टेर – राम नाम की सार सुणाऊं, सुणज्‍यो ध्‍यान
लगाकर के।

कूकर्मा की जड़ां काटद्यो, विद्या बाण चला
करके॥

सतयुग के प्रहलाद भगत ने, सिमरा नाम जचा
करके।

खम्‍भ फोड़ हिरणाकुश मारा, नृसिंह रूप धरा
करके॥1॥

त्रेता युग में तपस्‍या मे लागा, मुनि दुर्वासा जा
करके।

एक लाख का प्रण तोडि़या, अस्‍सी हजार बीता
करके॥2॥

द्वापर युग में युधिष्‍ठर राजा, बैठा सांच कमा
करके।

कृष्‍ण के कहणे मे आकर, गलगा हिमालय जा
करके॥3॥

कलयुग में निष्‍कलंक कहाया, गया बली को जाचण
के।

बलराजा का घमण्‍ड मिटाया, बावन रूप धरा
करके॥4॥

लादूदास जी मिल्‍या गुरु साहेब, कह गए सांच समझा
करके।

खींवाराम नाम मत भूलो, मानुष जन्‍म में आ करके॥5॥

 

जीव तूं मत करना जबराई।

बड़ा-बड़ा भूप हुवा धरणी पर, अमर रहा नहीं
कोई॥टेर॥

सतयुग मे हिरणाकुश राजा, बहुत करी अकड़ाई।

खम्‍भ फोड़ हिरणाकुश मार्या, नृसिंह रूप
धराई॥1॥

त्रेता मे राजा रावण ने, हरी जनक की जाई।

रामचन्‍द की शक्ति प्रकट, दीनी लंका जलाई॥2॥

द्वापर युग मे दुष्‍ट दुशासन, द्रौपदी नार सताई।

कृष्‍ण साहेब की शक्ति प्रकट, कौरव वंश खपाई॥3॥

कलियुग मे भैरव राक्षस ने, गहरी धूम मचाई।

रामदेव साहेब शक्ति, उजड़ भोम बसाई॥4॥

लादूदास सायब की शक्ति, युग-युग कला
सवाई॥5॥

 

टेर – देखो रे संसार मे, माच रहा तौफान रे।

माने कोनी मूरख अनाड़ी, कैसे होवे ज्ञान
रे॥

साध संगत, हर की भगति मे, लागे कोनी ध्‍यान रे।

नाच-कूद और खेल तमाशा, मनवा रेवे
गलतान॥1॥

वेद शास्‍त्र सांची कहता पर, आवे नहीं ईमान रे।

ओछी संगत, अक्‍ल का हीना, पड़े नरक की खान रे॥2॥

नेम धर्म मर्यादा तोड़ी, टूट गई कुल काण
रे।

यम का दूत पड़े सिर ऊपर, होसी बड़ा हैरान
रे॥3॥

संत अवतार धरे जग माहीं, सूता जीव जगाण रे।

खींव पूरण प्रकाश करे, ज्‍यों पूनम को
चान (चाँद) रे॥4॥

 

पूछो रे संसार ने, किसका गावे गीत
रे।

सांच बिना सुधरोला कोनी, ऊमर जावे बीत
रे॥टेर॥

गाना-बजाना, जगत रिझाना, हर नहीं आवे चित
रे।

माया देख भयो मतवालो, बिगड़ गई थारी नीत
रे॥1॥

जिनके चोट लगी दिल माहीं, दाही भ्रम की भींत
रे।

घायल होय फिरे जग माहीं, जीवत भया अजीत
रे॥2॥

मान गुमान मेट तन-मन का, छोड़ी जगत की रीत
रे।

सन्‍मुख होय सूरमा साजे, जमा से झगड़ा जीत
रे॥3॥

लादूदास मिल्‍या गुरु साहेब, दीनी ज्ञान की फीत
रे।

खींव कहे साहेब के शरणे, निर्भय हुआ
निश्चित रे॥4॥

 

टेर – हेली उल्‍ट देख दीदार, पिण्‍ड बिना पुरुष
ना है।

तीन, पांच की राय उल्‍ट कर, किया पियाना है।

लिव की लेज लगाय, चढ़े कोई संत
सुजाना है॥1॥

हूँ तू हाका मेट, नुरत निज निरख
निशाना है।

अधर दुलिचे आप अखण्‍डी, खास ठिकाना है॥2॥

पूग्‍या से प्रतीत, मिटे सब आना-जाना
है।

अगम भौम की सैल, हंस वहां थिर कर
थाना है॥3॥

सतगुरु मिल्‍या सुजान, आदू शब्‍द लखाना
है।

खींवा सत्‍य स्‍वरूप, आप मे आप समाना
है॥4॥

 

टेर – वीरो नया जमाना आएगा।

होवे पाप का नाश, धर्म झंडा
लहराएगा॥

चेतो करो, चूको मर वीरो, धर्म धणी ने ध्‍यावो।

गुरुगम फौज मोर्चो रोको, मत ना पीठ
दिखावो॥1॥

अब हम भ्रम किले को ढायेगा।

भूमि भार सहे नहीं वीरो, हो रही लोट-पलोट।

असंख्‍य युगों की जोर जमेड़ी, पलटेगी आ करोट
(करवट) ॥2॥

फिर ये नया रंग दिखलाएगा।

सत और सांच धर्म की पूजा, युगां-2 परवाणी।

निकलंक नाम धरायो दाता, संत भरे सैनाणी॥3॥

सबकी पोल खोल दिखलाएगा।

लादूदास जी मिल्‍यागुरु साहेब, दे दी अगम निसाणी।

खींव कहे साहेब के शरणे, अमर जागीरी
माणी॥4॥

अब हम धर्मराय कहलाएगा।

 

सांगलिया की बहार है, सारी दुनियां लार
है।

आवो मेरे सच्‍चे स्‍वामी, तेरा इन्‍तजार
है॥टेर॥

सारी दुनिया हिलमिल स्‍वामी, तेरा ध्‍यान
लगाते है।

दर्शन की बलिहार है, बणी बणाई बहार
है॥1॥

सांचा संत प्रकटे जग मे, आप लिया अवतार है।

मेला भरा भरपूर ठाठ से, नाम लिया आधार
है॥2॥

सांगलिया सकलाई सांची, संतों का दरबार
है।

आवत-जावत नर नारी, थारी बोले जय-जय
कार है॥3॥

दादर मोर पपीहा बोले, कोयल बड़ी सुप्‍यार
है।

तेरी हो रही अजब बहार है॥4॥

लादूदास जी मिले गुरु सामर्थ, डूबत लिया उबार
है।

खींवा आस चरणां की राखे, कर दिया बेड़ा पार
है॥5॥

 

टेर भटकत फिरे अजाण, आप ने भुलाया है।

सुरता शब्‍द पिछाण, पीव परदे मे पाया
है॥

परदा बीच प्रेम, गुरु प्रकट, रहत समाया है।

केवल स्‍वरूप, अरुप अनामी, थिर कर धाया है॥1॥

बहृमा, विष्‍णु, शंकर देवा, चौथी माया है।

त्रिगुण रूप माया का विस्‍तारी, सब घट छाया है॥2॥

सतगुरु, त्रेता, द्वापर, कलयुग आप उपाया है।

चार युगों से ही तुम न्‍यारा, अजर अजाया है॥3॥

जल थल जीव चराचर सब में, एक लखाया है।

खींवा एक अनेक रूप में, ,ख्‍याल रचाया
है॥4॥

 

सांगलपति की दरगाह ठाडी, दुखियो का दुख
हरणी।

अडिग आसन है साहेब का, जय साहेब की करणी॥

संत रूप हो आप अरूपी, दुखिया देखी धरणी।

सत का राज सत शब्‍दां साणे, सुरता नारी
परणी॥1॥

अवधूतां की धूणी माता, सत की लियां
कतरणी।

तैंतीस कोटि देवता हाजिर, दुर्गा, खप्‍पर भरणी॥2॥

जन्‍तर मन्‍तर जादू टोना में, ये संसारी है
मरणी।

सतसंग नैया मोक्ष दायनी, पार करे वैतरणी॥3॥

खींवादास जी सतगरु मिलिया, दे दिया नाम
निसरणी।

नौरंग छोटे मुख से, कैसे शोभा जावे
वरणी॥4॥

 

कुण्‍डलियाँ

ओम गुरु जी सांगलपति, भक्‍तों के भगवान।

लादूदास जी के शिष्‍य, खींवा संत महान्॥

खींवा संत महान्, भगत जी भक्ति
कमाई।

बँशी बँशी बजाकर, सोहम् धुन सुणाई॥

है अखिल भार‍तीय, धूणी सांगलिया
भोम।

गुरु सेवा भक्ति से, मौजां पाई है ओम॥

 

साधो भाई जुगत जांकी मुक्ति।

मरे पाछे कुण नर देखी, झुठी दुनिया बकती॥टेर॥

व्‍याभिचारी नार पति नहीं माने, कपट गाँठ दिल
रखती।

पतिव्रता नार पीयाजी की प्‍यारी, आण मिले छकछकती॥1॥

ज्ञान तलवार म्‍यान से निकली, फटकारी धकधकती।

भ्रम मोरचा पर ऐसी मारी, रति नहीं राखी
लगती॥2॥

ज्ञान का नेण खुल्‍या हिरदां में, जागी जोत भभकती।

उग आयो भाण बीत गई रजनी, दुर्मत गई
अफरती॥3॥

नेम धर्म दोनों नहीं पूगे, करणी ना पूगे
शक्ति।

कहे बिहारी देश दिवाना, उलट चढ़े अलमस्‍ती॥4॥

 

टेर – आ जायली, खा जायली, पड़ी रहे परी
जायली।

हालो तो गुरु वचना हालो, नहीं तो पाछी आ
जावली॥

बिना पांव बे अंगा चलता, बिन श्रवण सुणता
वाणी।

मुख बिना भजन करे भरपूरा, लाग रही एकण
ताली॥1॥

गुरु पियाणा ज्ञान सुणायो, कुण गूंगो सुरता
गेली।

कुण का खोज मंड्या दरगाह में, कुण थाने मूंड करी
चेली॥2॥

सता सरूपी सतगुरु आया, मन गूंगो सुरता
गेली।

सत की खोज मंड्या दरगाह में, शब्‍दां मूडं करी
चेली॥3॥

शीश बिना संग्राम रच्‍यो, कहो भाई धरण कियां
रेली।

कायर बेली काम नहीं आवे, सूरा खड़ग समा
लीनी॥4॥

पोढ्यो दौड़ गूण में बड़गो, बिणजारी बिकबा
चाली।

तन का तौला, मन का पालड़ा, धड्यां-2 तुलबा
लागी॥5॥

बिन बलदां के गाड़ी चाली, बैराठ नगर में बा
बेली।

मीठारामलकड़ जी का चेला, जाय सांगले सह लीनी॥6॥

 

जागृत बड़ा झबाका जग में, जागृत बड़ा झबाका।

हंसा अगर कबहु नहीं मरता, मेरा नूर खुदा का।

तीनों लोक भया जागृत, में बिरला पकड़या
नाका।

उपत खुपत दोय चाले पूरब जी, पार नहीं पाया
ताकां॥1॥

पढ़ग्‍या ग्रन्‍थ अर्थ कोनी जाणे, सभी ऐलम के लागा।

दूनिया बिचारी की कौन चितारी, काजी पण्डित थाक्‍या॥2॥

ज्ञान की नदी घट अन्‍दर बेवे, न्‍याह के देखो
मजाका।

बां नदिया में कोई हरिजन न्‍हावे, लेवे समझ डबाका॥3॥

आद अन्‍त मध्‍य बीच खड़ा, हुं सूणले ज्ञान
झड़ाका।

मेरा नूर सकल में व्‍यापै, मैं हुं दूर
पराका॥4॥

जागृत स्‍वपना सुषुप्‍ती, तुरिया आर पार होई
लागा।

कहै बिहारी जोगी देश दिवाना, पूगे शेर खुदा
का॥5॥

 

तर्ज – पंख होते तो उड़ जाती रे….

सांची थारी सकलाई जी, सांगलपति महाराज।

तुम्‍हे दुनियां शीश नवाती रे॥टेर॥

संत यहां पर धूणी तपे, सांझ सवेरे अलख
जगे।

जगदम्‍बा की ज्‍याति जगे है, निरखत ज्‍योति कष्‍ट
कटे॥1॥

बड़े भाग से गुरु मिले, कह दे अपने सारे
गिले।

इनके डर से यमदूत हिले, गुरु कृपा से
मोक्ष मिले॥2॥

सेवा यहां पर सर्वोपरि, जाति वर्ण में भेद
नहीं।

नेम और नीति कर लो सही, महापुरुषों ने
यही कही॥3॥

बंशीदास जी सतगुरु पाये, काल मौत से आप
बचाये।

ओमदास थांका गुण गाये, हिवड़े में सन्‍तोष
धराये॥4॥

 

दोहा – जय साहेब की बापजी, सतपुरषां आदेश।

नर मन चोला छोड़कर, मौजी भया महेश॥

बाबो साय, आज्‍यो भाय, करज्‍यो साय-मौजी बाबा।

मन मस्‍ताना रे राम दीवाना॥टेर॥

सांगलिया की सूरत लगाई, मस्‍त फकीरी पाई।

अड़कसर आय, धूणी धुखाय, दिवी पूजाय-मौजी बाबा॥1॥

बरड़ कर बजरंग बण जावे, शीश मुकुट धर नाच
दिखावे।

हो असवार, ले हथियार, कर ललकार-चाले बाबा॥2॥

सांगलिया के स्‍वामी राजा, सूरत भजन में
ताजा।

बावली फोज, करती मौज, रहती रोज-संग में बाबा॥3॥

मौजीदास मस्‍ताना जोगी, चारों कूँट
बादशाही भोगी।

धूणी सरनाम, लक्‍कड़ की धाम, सरे सब काम-साँची
बाबा॥4॥

सिरगोट ठाकुर शरणे आया, बाबो सा का परचा
पाया।

जलम्‍या लाल, बाज्‍या थाल, कर दिया निहाल-पल
में बाबा॥5॥

ठाकुर साब क हर्ष सवायो, बाबा क बंगलो
बणवायो।

अड़कसर आय, छतरी बणाय, जात दिराय-कंवर की बाबा॥6॥

तखत सिंह ने परचा पाया, भँवर ने जीवदान
दीराया।

मौजीदास, पूरी आस,रोग का नाश-कर दिया बाबा॥7॥

अगम बात बाबोसा पाई, दरगा की अब करी
चढ़ाई।

सब नरनार, जय जयकार, बेड़ा पार-करद्यो बाबा॥8॥

चोला छोड़ हरि रूप बनाया, गूपत होय ध्‍यान
लगाया।

मौजी महेश, सिमरु हमेश, काटो क्‍लेश-मौजी बाबा॥9॥

सांगलिया के स्‍वामी राजा, जंगल में बजवाया
बाजा।

मेला भरपूर हाजर्या हजूर, संकट दूर-कर दिया
बाबा॥10॥

जती सती नर जावण लाग्‍या, धर्म पुन भारत से
भाग्‍या।

धर्म रियो जाय, पाप रियो छाय, हमको बचाय-मौजी
बाबा॥11॥

पन्‍नालाल तेरे शरणे आया, असमाधि पर ध्‍यान
लगाया।

हर हर बाप, गुनाह माफ, करज्‍यो आप-जय साहेब की॥12॥

 

सांगल्‍यो साँचो चेतन खटको।

लक्‍कड़ फक्‍कड़ की महर हूई जणा, काल फंद कटगो॥टेर॥

पगा पावड़ी भगवां चोलो, लाम्‍बो टोप
लंगोटो।

झोली झण्‍डा और कमण्‍डल, हाथ में लहरी घोटो॥1॥

कालो डोरो कालो भैंरु, चुड़लो है जगदम्‍ब
को।

हाथा मेहंदी कांकण सोवे, सागे सांग अवधूत
को॥2॥

आदू धाम धण्‍यां की दरगा, आसण एक फक्‍कड़
को।

निरधनिया ने धन देवे, बाँझडि़याँ ने
लड़को॥3॥

रिद्ध सिद्ध नारी आज्ञाकारी, नहीं धुणे पर
टोटो।

देवी देवता हाजिर रहता, हणमत पायक मोटो॥4॥

सांगलिया का साँचा स्‍वामी, कोई मत जाणो झूठो।

जे कोई सूठो जाणे, पड़सी घर में
टोटो॥5॥

काचो खावे कोरो खावे, खावे लुको सूखो।

ऊँच नीच को भेद मिटायो, भोजन पायो मोटो॥6॥

लादूदास मिल्‍या गुरु सामर्थ, पायो ज्ञान गुटको।

दर्शन कर प्रसन्‍न भयी काया, ‘माँगूचरणां में लोटो॥7॥

 

अलख निरंजन

अजर अमर अविनाशी दाता, भेद कोई नहीं पाया
है।

लखने में नहीं आवत है, सब वेद पुराणों
में गाया है।

खलक में खेल दिखाय रहा, नहीं काई जननी
जाया है।

निकलंक निराकार कहलाता, धूप नहीं कोई छाया
है।

रंग-रूप आकार नहीं, फिर सब घट में दर्शाया
है।

जग के भीतर, सबसे न्‍यारा, सत स्‍वरूप कहलाया
है।

नहीं कोई तुमको जाण सके थे, अलख आपकी माया है।

कृपा भई मेरे खींव साहेब की, मदन को समझाया है।

 

तोते जैसी चोंच देखो, मोर जैसी नांच
देखो
,

हंस जैसी सांच देखो, कोयल जैसो गायबो।

मृग जैसी चाल देखो, कछुआ की ढाल देखो,

बैया जैसो जाल देखो, चिडि़या जैसो
नायबो।

टींटोड़ी की टांग देखों, बगुला को स्‍वांग
देखो
,

कुरजां की छांग देखो, गिद्ध जैसो खायबो।

पपीहे की प्‍यास देखो, भगतों की आस देखो,

बाबा खींवादास देखो, मदन के है सायबो॥

छांग – समूह में उड़ना।

 

पति

पति से ही ज्ञान ध्‍यान, पति से ही पार है।

पति ही तिरिया का गहना, पति में ही सार
है।

पति से ये रिश्‍ते नाते, पति से परिवार है।

पति मरे सती होती, पति के ही लार है।

पति से ये पेड़-पौधे, सेवा के आधार है।

पति ही सांगल‍पति, मदन के आधार है।

 

साहेब

सा – सांचा संत जगत में आते, अक्षय देश की धाम
है

हे – हेत लगाये, प्रीत बढ़ावे, मेटते झोड़ तमाम
है।

ब – बन्‍धन काट करे जीव मुक्‍ता, सुमरे जिनके राम
है।

     मदन
रोज रटो साहेब को
, लागत नहीं दाम है।

 

काली होती है भैंस फिर भी छतरी से दूर
भागे
,

जाति को देख स्‍वान, घुस-2 मरता है।

गज मोटी देह पाय, चींटी को वो दूर
टारे
,

तीन पांव टेक अश्‍व हिन-2 करता है।

नाभी में कुरंग फिर भी मृग बन माही डोले,

रोशनी को देख कीट अपने आप जरता है।

दिन के अजाले माही उल्‍लू नहीं देख सके,

आपको पिछाण मदन, काम तभी सरता है।

 

गोरख जैसा जति नांही, कबीर जैसा पति
नाहीं
,

अनुसुया सी सती नांही, कहेणे में नहीं
आवत है।

बाली जैसी शक्ति नाहीं, हनुमान सी भक्ति
नाहीं
,

माया जैसी ठगती नाहीं, संत सारे गावत है।

सुखदेव सा ज्ञानी नाहीं, कर्ण जैसा दानी
नाहीं
,

पदमा जैसी रानी नाहीं, मेरे ही मन भावत
है।

खींव सा उपकारी नाहीं, कोई चीज म्‍हारी
नाहीं
,

सेवा जैसी प्‍यारी नाहीं, मदन ध्‍यान लगावत है।

 

गारी-2 चमड़ी की दमड़ी नहीं कीमत मिले,

तोते की सी नाक, मौत खाक में
मिलाएगी।

बैल जैसे कंध, हाथी सूंड जैसी
भुजा तेरी
,

सिंह जैसी चौड़ी छाती, कौड़ी नहीं
बकाएगी।

जल जाए कैश चोटी, चाहे छोटी है या
मोटी
,

यार भिक्षु तेरी सोटी और लंगोटी भी जल
जाएगी।

रह जाए धन-माल, तिरिया, सुत, बंधु सारे,

मदन कहे सांची मान, जिंदगी फेर नहीं
आएगी।

 

सतगुरु

सर्व दुखों का नाश करके, ज्ञान की राह
चलाते हैं
,

तृप्‍त करके मन की आशा, भूल भ्रम सब ढहाते
हैं।

गु-गूढ़ रहस्‍य प्रकट करके, जीव को पीव मिलाते
हैं।

रूप आपणो देख मदन, ‘खींवयूं समझाते हैं।

 

भजन

टेर – सतगुरु सूता जीव जगावे है।

कर दे भ्रम का नाश, ज्ञान का भान
उगावे है।

सिर पर हाथ धर्यो मेरे दाता शब्‍द सुणावे
है।

दे उपदेश दया कर राखे, भेद मिटावे है॥1॥

बाण लगे मेरे गुरु शब्‍दां का, आनन्‍द आवे है।

हर्ष हुयो मन म्‍हारे ऐसो, कही नहीं जावे
है॥2॥

धर ले ध्‍यान गुरु चरणां मांही, आवे नहीं जावे है।

वेद, शास्‍त्र, संत पुकारे, अमर हो ज्‍यावे है॥

खींवादास जी सतगुरु साहेब, मने चेत करावे है।

हाथ जोड़ सतगुरु की महीमा, मदन गावे है॥

 

सोरठा

खेवटिया गुरु खींव, नौका है निज नाम
की।

परसाया निज पीव, मिलन कर दिया मदन
सा।

सांगल‍पति सरकार, दुखड़ा हरे दुनिया
का।

दानी है दातार, मनड़े भाव मदन-सा॥

ओम सम ओमदास, पीठाधीश्‍वर पद
पाय।

पूरण भयो प्रकाश, मौजां कर दी
मदन-सा॥

धुणी जोरकी धाम, निकलंक बाजे नोबत।

रमता जोगी राम, महिमा भाँखे
मदन-सा॥

आप अखण्‍ड अपार, आप हो अन्‍तर्यामी।

सबका सरजनहार, आपणा ओमदासजी॥

सतगुरु दीनी सीख, उन मां‍हि उतार
लीनी।

देव गया है दीख, मंगल गावे मदन-सा॥

सतगुरु करत असहाय, बेद का रूप बनाकर।

कर्म सभी कटवाय, मुक्‍त करावे
मदन-सा।

दर्शन हृदय देला, अपने आप ने ओळख।

गुरु बतावे गेला, मंजिल खोजो
मदन-सा॥

 

दोहे

सांगलिया साँची धाम, जयति जगत पुकारे।

शरणे आये का दुख हर, बिगड़ी सब सुधारे॥

ओम सम हो स्‍वामी, आप अन्‍तर्यामी।

दया का सागर मोटा, मेटो सकल खामी॥

सांगलपति गुरु शरण में, आठ पहर आनन्‍द।

मदन नित मौजां करता, टुट गये सब बंध॥

दया के सागर स्‍वामी, आप बडे़ जगदीश।

शीतल चमक जग नभ में, ओमदास रजनीश॥

 

ओम को स्‍वरूप देख मेरे मन हर्ष भयो,

कृष्‍ण अवतार ले साँगलिया में आयो है।

जन्‍मभूमि बरड़वा, वंश मेहरा आपका,

पिता नारायण माँ यशोदा कोख आयो है।

पूरबली प्रीतसू मनड़ा में भक्ति की धारी,

गुरुजी को हाथ सिर ऊपर धरायो है।

बाबा बंशीदास के परम शिष्‍य ओमदास,

खास नशामुक्ति अभियान जो चलायो है।

शीतल मूरत आपरी, सोहनी सूरत है,

मदन महिमाकर, कवित बणायो है।

 

सांगलपति जग में नाम कमाया।

जीवत मुक्ति कर दे जीव की, जो कोई शरणे
आया॥टेर॥

नमो-2 गुरुदेव को मनाऊं, सांचा संत कहाया।

अर्द्ध नारीश्‍वर रूप आपका, हो जावे मन
चाया॥1॥

शिव शक्ति की पूजा होती, आद गणेश, मनाया।

झिलमिल ज्‍याति जगे धूणा पर, आ है मोटी माया॥2॥

कर में कमण्‍डल, संग में घोटा, भगवा वस्‍त्र
पाया।

बायें हाथ में मेहन्‍दी मोली, जय साहेब
बतलाया॥3॥

मोटी दरगाह ओघड़ पंथी, जाति भेद मिटाया।

पल में कष्‍ट मिटा दे तन को, जां पर छत्र
छाया॥4॥

खींवादास जी सतगुरु साहेब, जादू जोर चलाया।

अपना जानकर कृपा कीनी, मदन आनन्‍द
पाया॥5॥

 

आज म्‍हारे गुरुदेव घर आया जी, म्‍हारी काया का
करतार॥1॥

गुरुजी भाव बादल बण आया, बिजली ने शौर
मचाया।

शब्‍दां की झड़ी लगाया, बरसे अमी फव्‍वार॥2॥

म्‍हारा सतगुरु नाद बजाई, आ सुरत शब्‍द पर
आई।

म्‍हारे बाड़ी ज्ञान की बाई जी, फल निपजे एकण
सार॥3॥

म्‍हारे प्रम फव्‍वारा चाले, तूं सुखमण क्‍यारी
बाले।

सतगुरु जी प्रीत लगाले, तन देवे बीज की
सार॥4॥

सतगुरु लादूदास जी पाया, श्‍यामा ने भेद
बताया।

सुख शान्ति से मंगल गाया जी, आनन्‍द भयो
अपार॥5॥

 

सांगल्‍या साँचा संत द्वार

भगत उबारण कारण स्‍वामी, लीनी देही
धार॥टेर॥

धूणी धाम सांगल्‍या दरगा, प्रकट हुए साकार।

भूले भटके कई जीवों का, कर दिया उद्धार॥1॥

दीन दूखी शरणे स्‍वामी, आवे नर और नार।

दूर करे दूख एक पलक में, नहीं लगावे
बार॥2॥

कई कई दुष्‍ट हुए धरणी पर, करते अत्‍याचार।

याद किया भगतों ने मिलकर, आप लिया अवतार॥3॥

खींवादास मिल्‍या गुरु सायब, दीना ज्ञान विचार।

रामूदास चरणा के माही, आनंद मंगलाचार॥4॥

 

श्री सांगलपति गुरु आरती

ऊँ जय सतगुरु दाता

गुरु देवन का देवा, आप सबके कर्ता।

निराकार साकार रूप धर, नामी कहलाता॥

पूरण ब्रह्मा प्रकट भये, सबके मन भाता।

केवल स्‍वरूप अनूप, शीश पर हीरा
भलकाता॥

अखण्‍ड ज्‍योत दिन-राती, निकलंक दरशाता।

आद आरती सुमरे सोही, संत सभी ध्‍याता॥

निशदिन ध्‍यान लगाकर, मोक्ष फल पाता।

सांगलपति जी महाराजा, दु:ख दालद हरता॥

खींव चरणों का चेरा, आपका गुण गाता।

॥जय साहेब की॥