सांगलिया धूणी का परिचय
वैसे तो अखिल भारतीय सांगलिया पीठ किसी के परिचय की मोहताज नहीं है। वर्तमान समय में पत्र-पत्रिकाओं, टी.वी., समाचार-पत्रों व सोशल मीडिया पर भी सर्च किया जा सकता है।
सांगलिया धूणी सीकर से जोधपुर सड़क मार्ग पर खूड़ व लोसल कस्बे के बीच में बामणी तलाई, जहाँ पर बाबा खींवादास स्नातकोतर (पी.जी.) महाविद्यालय संचालित है, यहाँ से 4 किमी. दक्षिण में सांगलिया ग्राम में स्थित है, सीकर जिले से लगभग 35 किमी. दूरी पर है। यहाँ पर जयपुर, जोधपुर, दिल्ली से चलने वाली परिवहन निगम व निजी बसें हर 15 मिनिट में मिल जाती हैं।
सांगलिया धूणी आज से लगभग 350 साल पहले सांगा बाबा (स्वांग) आये थे। उनके नाम से ही सांगलिया ग्राम का नाम पड़ा। लेकिन धूणी माता की स्थापना व यहाँ पर लोगों को चमत्कार दिखाने को कार्य सर्वप्रथम बाबा लकड़दासजी ने ही किया था।
सांगलिया धूणी पूरे भारतवर्ष में अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए है। यहाँ पर कदम रखते ही मानसिक व शारीरिक रूप से टूटे लोग जो पूर्ण आस्था रखते हैं, यहाँ बहुत ही सुकून मिलता है। अपने आप में एक अलग ही अनुभूति होती है।
आश्रम के अन्दर धूणी माता लक्कड़ेश मंगलेश मंगलदासजी का बंगला जहाँ आरती होती है। इसमें 5 समाधियाँ हैं। मंगलदास जी, लकड़दास जी, दूलदास जी, मानदास जी की समाधियाँ स्थित हैं।
इसके पश्चिम की ओर बरामदे में दक्षिण दिशा से बाबा बंशीदास जी की समाधी व मूर्ति, भगतदास जी की समाधी व मूर्ति जिनको वर्तमान पीठाधीश्वर ओमदास जी महाराज ने सन् 2018 में स्थापना करवाई। मौजीदास जी महाराज की चरण पादुका, बाबा खींवादास जी महाराज की मूर्ति व समाधि तथा लादूदास जी महाराज की मूर्ति स्थापित है।
इनके नैनृत्य कोण में गुफा बनी हुई है जिसमे पीठाधीश्वर साधु बाबा तपस्या किया करते हैं। इसके उतर में कुम्भदास जी महाराज व शंकरदास जी महाराज की समाधियाँ हैं। पास में ही हरिदास जी महाराज व अघोरी बाबा की समाधी है।
आश्रम के पश्चिम में खाना बनाने के लिए रसोई भी है। जहाँ पर 24 घंटे चूल्हे चालू ही रहते हैं। इसके पास में ही मीठे पानी का कुँआ व ट्यूबवेल बनी हुई है।
उतर के बरामदे में शिवजी महाराज, गणेशजी महाराज व हनुमानजी का मन्दिर है।
पश्चिम की ओर सिंचित क्षेत्र में एक तरफ पुरुष व एक तरफ महिला स्नानघर व शौचालय बने हुए हैं। धूणी माता के अधीन 20 बीघा व 40 बीघा दूसरे स्थान पर जिसको जीण बोले हैं, कृषि फार्म बने हुए हैं।
वर्तमान में आरती की जिम्मेदारी बलदू बाबा (रूपदास जी) व भभूत देने का कार्य भोलदास जी महाराज करते हैं।
यहाँ पर काम करने वाले प्रत्येक सदस्य अपनी जिम्मेदारी पूर्ण निष्ठा व सेवा भाव से करते हैं।
यहाँ बाबा लकड़दास गौशाला बनी हुई है। जिसमें काफी गायें हैं व सांगलिया ग्रामवासियों व आस-पास के गाँवों के लोग बहुत अच्छा सहयोग कर रहे हैं।
आदू धाम धण्या की दरगा, सांगल्यो है गाँव।
सायब एक सकल में व्यापे लक्कड़ स्वामी नाँव॥
यह औघड़ पंथी आश्रम है। इसको सरयंग/सर्वांगी भी कहते हैं। जिसका अर्थ कुछ भी खा लेना या प्राणी मात्र को एक समझना है।
सांगलिया धूणी पर जो जन सैलाब व जनकल्याणकारी कार्य देखने को मिल रहा है। सर्वप्रथम बाबा खींवादास जी महाराज ने शुरुआत की। इनसे पहले लोग सांगलिया वाले बाबा के नाम से डरते थे। हर कोई इनके नजदीक भी नहीं आता था। इस डर को बाबा खींव ने जगह-जगह सत्संगों के माध्यम से व अपने औजपूर्ण व मधुर वाणी से बहुत ही सरल तरीकों से समझाकर लोगों को जोड़ने का कार्य किया।
त्रिविध ताप से जूझ रहे लोगों को अपने आशीर्वचनों के माध्यम से दूर किया जिनके कारण इस आश्रम में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में रह रहे लोगों में पूर्ण आस्था व विश्वास भरा हुआ है।
भारत में रह रहे लोगों में समूचा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा दिल्ली, उतरप्रदेश, हिमाचल, आसाम, गुजरात व महाराष्ट्र के लोग यहाँ पर बड़ी श्रद्धा लेकर आते हैं व हँसते हुए जाते हैं।
सांगलिया धूणी की शाखाएँ सम्पूर्ण भारत में है।
साहेब के दरबार में, कमी काहे की नांय।
जैसी तेरी भावना, वेसा ही फल पाय॥
जो जैसी भावना लेकर आता है उसी के अनुरूप मिल जाता है। यहाँ के साधुओं में व इस आश्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पीठाधीश्वर व धूणी माता के दर्शन व महाराज श्री से मिलने के लिए कोई भी एजेन्ट नहीं होते हैं। जिसके भी दु:ख दर्द हैं या महाराज श्री से बातचीत करनी होती है, सीधे मिल सकते हैं।
बड़ी-बड़ी शाखाएँ हैं, मंदिर, गुरुद्वारे, मठ व अन्य संप्रदाय की जहाँ भी शाखाएँ है ऐसा खुला वातावरण हर जगह नहीं मिलेगा। यहाँ पर हर सुविधा नि:शुल्क ही साल भर भण्डारा चलता रहता है।
पूर्णिमा, अमावस्या व चतुर्दशी (4 तिथि) को खास मेला लगता है व पीठाधीश्वर श्री सभी को अपने हाथ से मोली बाँधकर व प्रसाद देकर लाभान्वित करते हैं।
यहाँ पर मैंने देखा है कि असाध्य रोग, बांझपन, पारिवारिक समस्याओं से ग्रसित, सामाजिक बहिष्कृत लोगों, जादू-टोने के नाम से ठगे गए लोगों, नौकरी के लिए भटक रहे लोगों को, जिनकी पूर्ण आस्था है, समस्याएँ तुरन्त दूर हो जाती हैं।
सांगलिया ग्राम में बाबा लादूदास जी महाराज के सान्निध्य में सन् 1945-46 में प्राथमिक विद्यालय की नींव रखी गई थी। जिसको बाबा खींवादास जी महाराज ने उच्च प्राथमिक व बाबा बंशीदास जी महाराज ने उच्च माध्यमिक विद्यालय तक क्रमोन्नत करवाने में भूमिका निभाई।
वर्तमान समय में तो हर शहर में B.S.T.C. व B.Ed. कॉलेज संचालित हो रहे हैं। मगर आज से 20-25 वर्षों पहले डीडवाना से सीकर तक उच्च शिक्षा को केन्द्र नहीं था जिसके लिए स्वयं शिक्षित (स्कूली शिक्षा) नहीं होते हुए भी बाबा खींव ने दिल्ली जाकर महाविद्यालय की स्वीकृति करवा कर कॉलेज बनवाया। जिसको बाबा बंशीदास जी महाराज ने P.G. कॉलेज का दर्जा दिलवाकर राजस्थान के महाविद्यालयों की सूचि में खड़ा किया। कहा है-
ज्ञान को दान कियो जग माहीं, सब दानों के हितकारी।
दीन-हीन दुखियों के दाता, ऐसा पर उपकारी॥
इसके अलावा चिकित्सालय, प्याऊ, धर्मशाला आदि भी अनेकानेक बनवाए गए हैं। जिनकी देखभाल पीठाधीश्वर महाराज के अलावा ग्राम सांगलिया के गणमान्य नागरिकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
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